घर से दूर आया हूँ
घर से दूर आया हूँ
घर से दूर आया हूँ,
एक नया घर बनाने को।
कुछ सपनों को सजाने को
कुछ अपनों को बसाने को।
झूठ-फरेब सब से दूर,
अपना एक महल बनाने को।
जहाँ सादगी हो सच्चाई के साथ,
लड़ाई भी हो तो मज़ाक के साथ।
आया हूँ तो बना कर ही जाऊँगा,
अपने सपनों का महल सजा कर ही जाऊँगा।
उस घर पर माँ के हाथों की सजावट चाहिए,
पापा के बुढ़ापे की मुस्कुराहट चाहिए।
मेरे एक ख़्वाब के दो पंख हैं,
मेरे माँ-पापा मेरे संग है।