तेरी तस्वीर उतारा करती है
तेरी तस्वीर उतारा करती है
ये रूहे तलब ये बेचैनी हर ज़र्फ गवारा करती है
ये साँसों की शिरक़त हमदम तुझको ही पुकारा करती है,
आईना मुख़ातिब रखकरके तेरी सूरत ये निहारा करती है
ये पलक झुकाकरके पल-पल तेरी नज़र उतारा करती है,
मोती ढलके तेरी यादों के आँचल में सम्हाला करती हैं
तपते सेहरा में आबे शरीफ़ सा ख़्वाब उतारा करती हैं,
हम तुमको बताएँ कैसे सनम ये रात गुज़ारा करती हैं
हर लम्स चाँद के तासु में दीदार तुम्हारा करती हैं,
मेरी चश्म! लफ्ज़े आरज़ू ज़हन तेरा ही उभारा करती है
यों तो मेरी खामोशी भी तेरी ओर इशारा करती है,
कुछ इंतज़ार पे कटती है कुछ एतबार कटती है
ये इश्क़ जिगर भर बेताबी एक उमर गुज़रा करती है,
नूरे चश्म! तुझे बेताब नज़र बेसबर सी ढूँढा करती है
अल क़ायनात की हर शय में तेरा ही नज़ारा करती है,
बैठी-बैठी बहकी-बहकी सी ख़ुद से बातें करती है
ये लबे तबस्सुम पे तेरी तस्वीर उतारा करती है!

