नेह निलय (prompt 2)
नेह निलय (prompt 2)
नेह निलय में बसते हो प्रिय जगते हो इन आँखों में
चाँद मेरे तुम झिलमिल तकते इन्हीं रात की शाखों में
दिवस तुम्हारी दीप्ति अलौकिक जगमग प्राण प्रपातों में
अविरल नेहिल छवि खिलती है स्वप्निल सन्दल रातों में
मौन तुम्हारा मधुरिम भाषित अविगत सिंचित पातों में
कुसुम तुम्हारा हास अधर पर खिलता बातों-बातों में
मूल तुम्हारा प्रेम पुष्ट हृद माटी की नरम कछारों में
अग-जग तुम विकसित विलसित झंकृत हो हृदय तारों में
रंग तुम्हारा ही सजता है सच है सब तीज-त्योहारों में
पिछली बरखा याद होगी संग भीगे थे बौछारों में
यादें वो गठिया लीं थी भींजे आँचल के किनारे में
दर्पण देख लजाती आँखें सोच तुम्हारे बारे में
कैसे हो, आओगे कब सब सच लिखना अबकी चिट्ठी में
जादू वाली दुनियाँ मेरी खोल दिखाना अपनी मुट्ठी में
