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chanchal jaiswal

Abstract

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chanchal jaiswal

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ऋतु का आगम

ऋतु का आगम

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उसने माथा चूम लिया था

धूप खिली थी आँखों में

और अधर का फूल खिला था

ख़ामोशी संदल संदल थी


मन में क्याकुछ बीज दिया था

और सजल से नेह नयन ने

रोम-रोम मृदु सींच दिया था

बाँध लिया था गगनपाश में


रंगों में उन्मुक्त किया था

उष्मित माटी गीली गीली

मौसम यों अनुकूल मिला था

भाव बीज का मुकुलित होना


सपनों का दूकूल मिला था

उसने माथा चूम लिया था

अपनापन भरपूर मिला था

या फिर था मैं मिला स्वयं से

दर्पण ऐसा खिला-खिला था।


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