तेरी भोली सूरत
तेरी भोली सूरत
गीत
तेरी भोली सूरत
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नहीं थकूं मैं रोज मनाते,
तू ऐसा त्योहार लगे।
तेरी भोली सूरत काबा,
लगे कभी हरिद्वार लगे।।
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लाख मुझे दे कोई लालच,
धन दौलत अधिकारों का।
लाख मुझे दे कोई लालच,
नौकर चाकर कारों का।।
कोई तोले मुझे तराजू,
पर लोगों सुविधाओं की।
मालिक कोई बनाए मुझको,
बंगलों और बहारों का।।
ये सब लालच तुच्छ मुझे,
बहका न कभी भी पाएंगे।
तेरी सहज सुलभ चंचलता,
को सब शीश झुकाएगें।।
साबिर तेरा रूप मुझे,
ज़रदारों का सरदार लगे।
तेरी भोली सूरत काबा,
लगे कभी हरिद्वार लगे।।
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प्यार बांटती रहती हैं तू,
घट सबके भरने वाली।
नयनों से करुणा तेरे,
झरती है दुख हरने वाली।।
संगमरमरी देह तराशी,
प्रतिमा जैसी लगती है।
मुस्कानों के मोती टांगे,
आकर्षित करने वाली।।
ऐसी दौलत छोड़ सखे क्यों,
आज किनारा कर जाऊं।
जी करता है बना पतिंगा,
जान लुटा दूँ मर जाऊं।।
तू"अनन्त" है मेरी अफ्सरा,
मुझको खेवनहार लगे।
तेरी भोली सूरत काबा,
लगे कभी हरिद्वार लगे।।
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अख्तर अली शाह "अनंत "नीमच