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Shah Talib Ahmed

Romance

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Shah Talib Ahmed

Romance

Tere mere darmiyan (दरमियां )

Tere mere darmiyan (दरमियां )

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गर खफ़ा न हो मुझसे तो वो बात कहूँ

दरमियां हैं तेरे मेरे वो राज़ कहूँ ।


रहबर हो कि मुझे ग़लत कहनेवाले

बुरा न लगे तो तेरी बेवफ़ाई वाले सारे जज़्बात कहूँ।


अब जो में ग़लत हूँ , तो कैसे तेरी सना कहूँ

जिस्मों में उलझने से पहले की उल्फत को तेरी खता कहूँ

जो हो न सका तेरे इंतज़ार में अब उसको में क़ज़ा कहूँ ।


मेरे हम उमर हम साये हम दम हम राही 

आखिर क्यूँ देनी पडती है सबूत ए बेगुनाही।


क्यूँ तुम नादाँ हो जाते हो बिना सफाई

ज़रा फिर से सोच के दोहराओ कहानी हमारी

या क्या चाहते हो मुझसे वो सारी बातें तफसील से में ही कहूँ ।


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