Shah Talib Ahmed
Others
मेरी हरारत को भी वो बुखार समझती है।
ज़रा सी आवाज़ तेज़ हो जाये तो वो खार समझती है।
मैं कितनी भी तमीज़ से पेश आऊँ वो सब बेकार समझती है।
जब तक उनके रुख़सारों को ना चूमो कहाँ वो प्यार समझती है।
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