कुछ गर्म आँसुओं से बर्फ़ की तासीर को बचा भी लो न। कुछ गर्म आँसुओं से बर्फ़ की तासीर को बचा भी लो न।
उसके काँपते हाथों की छुअन में, उसके काँपते हाथों की छुअन में,
मैं कितनी भी तमीज़ से पेश आऊँ वो सब बेकार समझती है। मैं कितनी भी तमीज़ से पेश आऊँ वो सब बेकार समझती है।
शायद अब भी तुम मेरे हो तभी तो रुलाते हो! कहते हो हमसे हम तुम्हारे नहीं फिर ख्वाबों में आके हमें क्... शायद अब भी तुम मेरे हो तभी तो रुलाते हो! कहते हो हमसे हम तुम्हारे नहीं फिर ख्व...
तुम देर रातां तक ख़यालों में दौड़ीं। तुम देर रातां तक ख़यालों में दौड़ीं।
कभी बौछार खुशियों की, कभी दुख का समंदर है। कभी बेचैनियाँ मन की, मचाती खूब बवंडर है। कभी बौछार खुशियों की, कभी दुख का समंदर है। कभी बेचैनियाँ मन की, मचाती खूब बवं...