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Prabal Pratap Singh Sikarwar

Drama

5.0  

Prabal Pratap Singh Sikarwar

Drama

तेरा अक्स, माँ

तेरा अक्स, माँ

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न जाने क्यों अकेला सा है ये समां...

न जाने क्यों अधूरा है मेरा जहाँ...


हो जाता हूँ मैं अक्सर उदास तेरे बिना,

न जाने क्यों सताती है हर पल तेरी याद माँ..


माँ, मैं तुझसे ही मुकम्मल,

क़ाबिल भी तुझ ही से हूँ...


हूँ मैं तुझ ही से ज़िंदा,

रोशन भी तुझ ही से हूँ...


ये सच है कि कभी-कभी मैं,

तुझसे बात नहीं कर पाता...


सच ये भी है कि,

बात किए बिना नहीं रह पाता...


हाँ कभी उलझ जाता हूँ,

लम्हों के उस भँवर में...


पर तू कभी रूठ ना जाना

इन ज़ख़्मों के पहर में...


हाँ, कभी-कभी कुछ दिल की बातें

छुपा लेता हूँ मैं तुझसे...


अपने दिल के बेबस आँसू

हटा लेता हूँ मैं ख़ुद से...


लेकिन कहीं मेरी आँखों की नमी

तेरी पलकों पे समंदर ना ले आए...


कि कहीं ये मेरी ख़ामोश चीख़ें

तेरे कानों में कोई शरर न दे जाए...


होऊँगा मैं ख़ुद से जुदा पर,

तुझसे बिछड़ न पाऊँगा माँ...


खोऊँगा जब अपनी रमक़ तब,

तेरा अक्स खुद में ले जाऊंगा माँ...।।


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