ताया जी
ताया जी
एक ताया जी थे मेरे
भजन वो करते रहते थे
माथे पे थे तिलक लगाते
सब पंडित जी उन्हें कहते थे
संयुक्त परिवार था हमारा
उनके कोई नही था बच्चा
मेरे से लगाव बहुत था
रिश्ता हमारा बहुत अच्छा
जो भी मुझे चाहिए होता
उनसे मैं था मांग लेता
न कभी न करते,कहते
तू तो मेरा अपना बेटा
कॉलेज में एडमिशन हुई
वहां भी मदद मेरी कर दी
पैसे की कमी थी थोड़ी
आधी फीस मेरी भर दी
मेडिकल में पास हुआ
पढ़ने था मैं बाहर गया
एक दिन ये खबर आई
ताया जी का निधन हुआ
आ न पाया अंत्येष्टि में
हालाँकि बहुत वियोग था
परीक्षा चल रही थी मेरी
जिस दिन उनका भोग था
काफी साल बीत गए
शादी भी मेरी हो गयी
भूल उनको पाया न मैं
याद उनकी न गयी
पत्नी संग बैठे एक दिन
बात उनकी चल पड़ी
मैंने बोला याद आते
ताया जी मुझे हर घडी
कभी कभी मुझे सपना आता
जैसे मुझको कह रहे
आशीर्वाद वो मुझे देते
बेटा तू जीता रहे |
अगले दिन था मैंने देखा
फोटो घर पर टंगी थी
पत्नी ने पीछे से कहा
पुरानी एल्बम में लगी थी |
एक दिन सुबह मैं उठा
चाय की डिमांड की
पहले पूजा,फिर मिलेगी
पत्नी ने आवाज़ दी
मैं अभी किचन में हूँ
खाना मुझे बनाना है
बाहर घंटी बज रही
पंडित जी को आना है
पंडित जी बाहर खड़े थे
मैंने जब थी कुण्डी खोली
मैंने पूछा ये सब क्या है
हंस के वो फिर मुझसे बोली
कहते तुम थे बेटे उनके
ये बात मुझे याद है
तुम बेटे तो मैं बहू हूँ
आज उनका श्राद्ध है।
