ताटक छंद....
ताटक छंद....
अस्ताचल में सूर्य थमा है,
पूछ पृथा जागीरों को ।
भीतर तेरे छुपा गगन है,
तोड़ सभी जंजीरों को ।।
तुममें भी है हॅंसी पात्रता,
ढूंढो मृग कस्तूरी को ।
रिश्ते पावन होते देखो,
भाल सजे सिंदूरी को ।।
मुग्ध-मयी इक गंध रमा है,
मंद-मंद कर्पूरी को ।
मानव जन्मा आदिम युग से,
सीख लिया दस्तूरी को ।।
क्रुद्ध हुआ अब अंतस ढॉंचा,
तोड़ो इन प्राचीरों को...
भीतर तेरे छुपा गगन है,
तोड़ सभी जंजीरों को..