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usha yadav

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usha yadav

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ताश के पन्नों सी जिंदगी

ताश के पन्नों सी जिंदगी

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ताश के पन्नों सी जिंदगी 

रोज बनती है बिगड़ती है 

संजोती है उन मृदु ख्वाबों को 

जिस पर खड़ा किया है तुमने 

अपने सपनों का महल 


तेरे होने का अब अस्तित्व ही क्या

 जितनी बार जोड़ जोड़ कर खड़ा

 किया ये महल…….


 उतनी बार ही हवा के झोंकों ने

 गिरा कर जमी पर बिखेर दिया

जैसे ताश के पत्ते जमी पर बिखर

 कर ढूंढ रहे अपना अस्तित्व


 हर बार प्रयास किया ओर करता रहा

 जीता है जब तक रहता है विश्वास

 खुद पर कि एक दिन इन ताश के 

पत्तों की तरह होगा अपना भी महल 


 क्या पता है उसे कि है ये

 सपनों से बना ताश के पत्तों 

का है महल ………


जब तक सांस की है डोर 

तब तक यह महल ही क्या 

घर भी है अपना बना


 जिस दिन यह सांस है रुकी

 बिखर कर ताश के पत्तों की तरह

 लिपटकर चादर में हमें इस शरीर को 

भी कहना है विदा !


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