सय्यारा
सय्यारा
थीं उनकी कुछ ऐसी ख्वाहिशें सय्यारा
जो मिटाने से मिट गए रूह के तारा
जागता रहा मैं रात जगनाई में
न पा सकें, न हो सकें वो प्यारा
छूट गए वो साथ अपने न मिले दोबारा
जो बरसों से लगा बैठें थे बज़्म- ए- याराँ
मेरा सर चकराए पत्थर से तोड़े दिल अपने
न मिला मुझे लौटने का कोई जवाब करारा
क्यूँ रहूँ मायूस ख्वाहाँ से मैं सारा
हर बार दिखता है वो आँखों में यारा
रफीकों से अच्छा है मुझे तसकीन ख़ुदा
जो कभी मिले न इस वादियों में शरारा
वाह क्या मुर्शिद थे वो अपने
गफलत हैं वो नूर जिसे कहा सपने
मेरे इश्क में वो तलबगार थे कभी
आज तो रूठने का तो मौका अपने।

