स्वयं
स्वयं
दीवार पर टँगी तस्वीर को
सब लोग घूरकर देखते है
कोई ध्यान नही देता
उस नन्ही सी कील पर
जिस पर तस्वीर अटकी है
कई ज़िंदगियाँ इसी तरह
अपना वज़ूद पाने में भटकी है
लोग तो साहिब! उस दीवार को ही
भुला देते हैं जिस पर कील और
तस्वीर अटकी है वाह साहिब !
आपके भी क्या कहने बड़े
सुकून के साथ हाथ में
चाय का प्याला और आंखों पर
मनुपुलेशन का चश्मा चढ़ाकर
अख़बार की हेडलाइन्स पर
छीटाकशी करते रहने से
देश मे बदलाव की उम्मीद करते रहना
यह तो आप ही कर सकते हैं
इतना सब्र त
ो आप में ही है
और जाने कितने ऐसे आप है
जो इसी तरह अपने वज़ूद को
दो वक़्त की रोज़ी रोटी कमाने में गुम कर
स्वयं को भुला ही बैठे है और
इंतज़ार कर रहे है कोई और
उनके लिए कुछ करेगा पक्का करेगा
आज नहीं तो कल करेगा
लेकिन ज़रूर करेगा
अपने इस नज़रिये पर उन्होंने कभी
धूल की एक मामूली सी गर्त भी
नहीं जमने दी है और उस अनजान
शख़्स को लेकर उनका विश्वास इतना
पुख़्ता और सशक्त है जितना
भक्त का अपने ईष्ट पर भी नही होता
और इसी विश्वास की एक कड़ी
कहीं न कहीं हम स्वयं भी है।