स्वीकार तो करो
स्वीकार तो करो
जो दिया, जितना दिया, जैसे दिया
तेरी दी हुई किसी चीज को
हमेशा ख़ुशी से स्वीकार किया मैंने,
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी...
क्या कभी तेरा तिरस्कार किया मैंने!
ज़ब तू बादल बनकर बरसी
तो मेरी अँखियाँ हर्षी ,
ज़ब तू जेठ तपती की दुपहरी बनी,
मैं कब तुझसे जिद में ठनी
दुख की हर रात के बाद खुशियों की
चमकीली धूप का इंतजार किया मैंने,
ऐ ज़िन्दगी आ बैठ मेरे जानिब
तुझे हर सूरत में चाहा है, सराहा है,
तू ही बता तुझे कभी इनकार किया मैंने
तुझे तो हर रूप में स्वीकार किया मैंने!

