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Pooja Agrawal

Inspirational

5.0  

Pooja Agrawal

Inspirational

स्वावलंबन

स्वावलंबन

1 min
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मन मयूर सा नाच रहा,

हृदय मेरा बना मृदंग,

तान छेड़ के उल्लास की,

भर रहा मुझ में उमंग।

श्वेत फूलों का गजरा,

महका गया मेरा अंतरंग,

चूड़ियां रंग-बिरंगी पहनी ,

मैंने अपनी मनपसंद।


पायल मेरी मुझसे पहले,

गीत अनोखे गाती है,

कुमकुम चेहरे पर लाल,

मुख की कांति बढ़ाती है।

काला काजल नयनन में लगाया,

तो वो खुद ही डबडबा गया,

खुशी के अक्षुओं का हार

मुझे पहना गया।


व्यथा वियोग सब छोड़ के,

रूढ़ीवादी रस्में तोड़ के,

कुरीतियों से मुख मोड़ के,

नई आशाओं से नाता जोड़ के।

घुंघरू पहनकर पांव में,

आज मैं पूरे आवेग में,

नृत्य करूंगी झूम के,

सारे बंधन तोड़ के।


सोलह सिंगार किसी के लिए नहीं,

मैंने खुद को संवारा है।

प्रेम जो खुद से हुआ सखी री,

पुरुष तत्व समाज मेरे आगे हारा है।

काया मेरी को देता ताना ,

मुझको कहते है कुरुप,

मैं तो खुद ईश्वर की हूं ,

उसी ने मुझे दिया है रुप।


मैं खुद में संपूर्ण हूं,

मैं कादम्बनी, दुर्गा काली हूं ।

अगर त्रुटि नहीं उसके सृजन में ,

तो मुझ में क्यों निकालते हो?

तुम खुद क्या परिपूर्ण हो?

जो मुझे धिक्कारते हो।

स्वच्छंद होकर नीले अंबर के तले,

नाचूंगी मैं जी भर के,

है किसी में दम जो मुझको रोक ले।


मेरे विचारों मेरी अभिलाषाओं को,

क्या तू कैद कर पाएगा?

जो आएगा मेरे पथ में,

वह मेरे तेज से जल जाएगा।

हर पुरुष से भारी हूं मैं ,

मैं अबला नहीं रही अब,

आधुनिक नारी हूं मैं।



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