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Mani Aggarwal

Inspirational

4.9  

Mani Aggarwal

Inspirational

स्वार्थ की दुनिया

स्वार्थ की दुनिया

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देह की प्रीत में तुम नेह के सपने संजोते हो

कैसे नादान हो अब बैठ पलकों को भिगोते हो।


शहर में पत्थरों के, फूलों की उम्मीद ही क्यों की ?

गलती खुद ही तो की फिर भला क्यों बैठ रोते हो ?

देह की प्रीत में तुम नेह के सपने संजोते हो

कैसे नादान हो अब बैठ पलकों को भिगोते हो।


देखो बच्चों ने भी सीखा पंछियों से सलीका अब

घोंसले छोड़ उड़ जाने का उनको भी तरीका अब

तुम क्यों छलका रहे मोती आशिया छूट जाने पर

पुरानी चीजें अक्सर रखने के काबिल नहीं होती।


चलो छोड़ो बढ़ो आगे नया एक आशिया ढूंढो

यो गुमसुम बैठ तन्हा देह का क्यों बोझ ढोते हो ?

देह की प्रीत में तुम नेह के सपने संजोते हो।


अरे ! क्यों इतने हैरान हो ? जो साथी

दूर जा बैठे

ये दुनिया की रिवायत है खनक के साथ चलती है

जरा मशहूर हो लीजे काफिले साथ में होंगे

ना मुड़ कर देखना होगा गले इतने पड़े होंगे।


जरा धरती से उठ पहले तुम आकाश तो छू लो

सितारों को फलक के, बैठ धरती पर क्यों टोहते हो ?

देह की प्रीत में तुम नेह के सपने संजोते हो।


कहाँ अब ढूंढते हो अनछुए शरमाए यौवन को

चुनरिया लाज की डाले हुए मदमाए यौवन को

के फूलों से भी अब एक डाल पर ठहरा नहीं जाता

सदी इक्कीसवीं में रूप उन्नीस का नहीं भाता।


हो रही बीती बातें बिंदिया, पायल चूड़ी की खन-खन

और तुम आज भी श्रृंगार की कविता पिरोते हो ?

देह की प्रीत में तुम नेह के सपने संजोते हो

कैसे नादान हो अब बैठ पलकों को भिगोते हो।।


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