सवाल
सवाल
वो ठहाके लगाते रहे
और पैसा बनता रहा
हमने खुद को हैरान देखा ,
तो मनाना पड़ा ये कहकर की ..
धारावाहिक हास्य है, चलो ज़रा हँस ले
पर हैरानी ये थी कि
अंत तक हंसी आयी ही नहीं ..
बस टीवी बंद करके जैसे ही उठी
तो अख़बार में
ज़ानवारों के लिये ब्यूटी सलून
और
इंसानों के लिये वृद्ध आश्रम देख के
अचानक हंसी, जाने कहाँ से आ गयी ..
ये
नाटकियता की जीत थी
या
इंसानीयत की हार ??