स्वाभिमान
स्वाभिमान
उदासीभरी हंसी तुम क्यों हंसती हो ?
सबके आगे बैठती हो बुत बनके,
क्यों अपनी बात नहीं रखती हो ?
जब कोई पूछता है तुमसे तुम्हारी खुशी,
तो तुम सच क्यों नहीं कह सकती हो ?
अपनों का सोचकर तुम ये अपमान सहती हो,
तो क्या तुम इसे अपनों का सम्मान समझती हो ?
सम्मान गर चाहिए सबका तो पहले खुद का सम्मान करो !
अभिमान की बात नहीं है यहाँ मगर
अपने स्वाभिमान का मान करो !
कमजोर या अबला मत समझो खुद को,
न ही बोझ जैसे शब्दों का ध्यान करो !
बस अब उठो खड़ी हो
करते हुए सबका सम्मान
खुद का भी सम्मान करो !