सूरज और समंदर,
सूरज और समंदर,
सूरज और समंदर की जोड़ी,
ऐसे, जैसे कृष्ण और अर्जुन,
बस एक दूसरे से निस्वार्थ प्रेम,
सूरज सदा देता समंदर को जीवन,
भरता रहता सदा उसमें तेज- प्राण,
नित्य सदा पोषित करता रहता उसे,
अपनी पावन किरणों के तेज से,
समंदर भी सूरज की गुरुतुल्य किरणों,
के तापों को सहनकर भी कभी भी,
कभी विचलित न होता,
सूरज भी सदा हर पल,
रखता समंदर का ध्यान,
सदा करता रहता जीवन,
जल से समंदर को परिपूर्ण,
सूरज के साथ-साथ चंद्रमा भी,
सूरज के तेज और प्रेरणा से,
पोषित होकर नित्य प्रति,
अपना कर्तव्य सदा निभाता,
समंदर को जानता प्राणों से प्यारा
पोषित करता और सदा ही,
अपनी दृष्टि बनाए रखता,
फिर भी प्राकृतिक के निस्वार्थ प्रेम से,
हम कुछ भी न सीख पाते,
हम तो बड़े मिल जाने पर,
छोटों को सदा छोड़ देते हैं।
भूल जाते सदा बुजुर्गों की यह कहावत,
जहां काम आवे सुई वहां का करी तलवारी
समय ना मिलने का बहाना,
बनाकर कन्नी ही काट लेते हैं,
पसंद अपनी बदलती रहती है,
मन में उधेड़बुन चलती रहती है,
मिलने पर बेहतर सदा ही,
पहले वाले को छोड़ देते हैं,
दिख जाए अच्छा तो मन मोड़ लेते हैं
सकुचाते नहीं बस दिल तोड़ देते हैं,
भले ही वह लुटाया हो सदा,
अपनी जान हमारी ही खातिर,
फिर भी हम तनिक सी भी,
उसकी परवाह भी नहीं करते
रोते-बिलखते उसको रास्ते पर,
सदा उसके हाल पर छोड़ देते हैं।
निकल जाने पर अपना मतलब,
फिर तो कभी पहचानते नहीं है।
चाहे पहले हमने उसे माना,
भी हो कभी अपना देवता।
पर आंखें टेढ़ी कर उसकी ओर,
सड़क के भिखारी सा छोड़ जाते हैं।
देकर मानवता की भी तिलांजलि,
मदहोश हो चूर अपने घमंड से।
सच्चे इंसान के दिलों में,
भी ईश्वर वास करता है।
इस बात को भी भूल कर,
दो मीठे बोल कहने-सुनने,
से भी उसे सदा कतराते हैं।
भूल जाते हैं प्रकृति की सारी महानता,
अपने परमपिता की बातें भूल जाते हैं।
भूल जाते हैं धरती माता की,
विशाल हृदय की सारी बातें,
इनकी कार्य, त्याग-बलिदान,
सहनशीलता और समर्पण को,
सदा ही हम तो भूल जाते हैं,
भूल जाते हैं, सागर का संयम,
और सूरज की सेवा, प्रेम और,
त्याग को भी तो भूल जाते हैं
बस खुद को और अपने मन को,
संकुचित कर स्वार्थी बने रहते हैं।
विचारें आप ही क्या यह उचित है ?
अगर आप के दो मीठे बोल से,
मिलता है किसी को जीवन,
फिर आखिर वह किस दिन
किसको क्या काम आएगा ?
फिर आखिर इतनी बेरुखी क्यों ?
कुछ भी कहना है या करना है।
बस प्यार से बोल दे, सच्ची बातें,
सामने वाला ऐसा तो नहीं,
आपकी बात समझ न पाए,
आखिर इतना मतभेद क्यों,
सूरज और समंदर की तरह,
रखे एक- दूसरे का ध्यान,
कृष्ण और अर्जुन की तरह
हो आपको भी नई पहचान।