सूनसान रास्ता
सूनसान रास्ता
एक दिन मैं तन्हा अकेली सूनसान रास्ते पर जा रही थी
धुँधला-धुँधला सा था सब पता नहीं कहाँ जा रही थी।
मुझे लगा कोई पीछा कर रहा है मेरा
कुछ अजीब सी कदमों की आवाज़ ने मुझे घेरा।
पीछे मुड़ के मैंने देखा सिर्फ़ छाया था घना अंधेरा
नग्न आकाश के नीचे ये अजीब सी आवाज़े मुझे रही थी डरा।
काँपते हुए पैरों के साथ थोड़ी हिम्मत जुटा के आगे बढ़ी
महसूस हुआ मुझे, कुछ तो है गड़बड़ी।
मन ही मन में ईश्वर का नाम लिए ढूंढ रही अपनी गली
रास्ता जैसे भूलने लगी थी आँखें पड़ गई जैसे धुँधली।
रास्ता ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था
आज मेरी मंज़िल दूर लग रही थी डर भी और बढ़ रहा था।
वो भयानक कदमों की आवाज़ और तेज़ी से बढ़ गई
मैंने भी अपने कदमों पर ज़ोर लगाया, जल्दी से अपने घर की ओर चल पड़ी।
दिल की धड़कने बढ़ गई पीछे देखने से मैं झिझक रही
सोचा एकबार देख ही लूँ कहीं ये मेरा भ्रम तो नहीं।
घबराहट के साथ मैंने अपना मुँह पीछे मोड़ा
अचानक से किसी ने मेरा हाथ पकड़ा।
उठो बेटा हो गया सवेरा, वो हाथ मेरी माँ का था
ईश्वर का शुक्रिया किया, अच्छा हुआ वो सिर्फ़ एक बुरा ख़्वाब था।
