"सूने झूले-सूखा सावन"
"सूने झूले-सूखा सावन"
झूले आज भी कर रहे, उनका इंतजार
कब आएंगे, उनके वो मित्र रचनाकार
जिनके लिए, भीग रहे, वो सावन फुंहार
झूलने के इंतजार, में हुए इस कदर बीमार
अकेले ही झूलकर, मना रहे, तीज त्योहार
न दिखती, आजकल सावन की डोकरी,
सावन का भी बदल गया, आज व्यवहार
झूले क्या करेंगे, जब नहीं होगी बरसात
सूखे सावन में, तन वस्त्र भी लगता, भार
सूने झूले देते है, हृदय में शूल सा व्यवहार
सूखे सावन के हम लोग ही है, जिम्मेदार
बढ़ते प्रदूषण से कैसे आएगी, सावन बहार
सूने झूले टूटे रिश्तों की बताते, बातें बार-बार
लोगों के तब टूटे जाते है, साखी बंधुत्व तार
स्वार्थ का भर जाता ह
ै, जब भीतर पारावार
तब सूनी होने लगती है, झूलों की कतार
किसे वक्त आज, जो झूले झूला मजेदार
सब त्योहारों को खा गया मोबाइल, बेकार
आओ प्रण ले, जोरशोर से मनाएंगे त्योहार
बचाएंगे संस्कृति, मिटाएंगे प्रकृति से रार
तकनीक इस्तेमाल में होंगे, बहुत समझदार
करेंगे प्रकृति से प्यार, छोड़ेंगे स्वार्थी व्यवहार
फिर न होगा सूना कोई झूला, इस तीज त्योहार
सब मिलकर लाएंगे, पहले जैसी सावन बहार
देखते कैसे न मिटेंगे नफरतों के शूल, हजार
जब भीतर बह रही हो, सबके बंधुत्व बयार
आओ झूले झूला, भूल जाये, दुनियादारी रार
रहे आनन्दित, जिये जिंदगी जिंदादिली से यार