सुरूर
सुरूर
चांदी आ गई बालों में
आंखो में धुंधला सा
वाकपटुता भी बदलने लगी
सनक तो आनी ही है
हर उम्र का अपना मज़ा है
मुझे तो जीने मै मज़ा भी आ रहा
लोग भी मेरे पास आकर बैठ कर
बतियाने लगे है
सनकी होने का सुरूर मुझ पर छाने लगा है
जिंदगी की बारीकियां
अब समझ आने लगी है
चांदी आ गई बलो में
अब तो सजने का भी में करने लगा है
वक्त ही वक्त है खुद से बाते भी अब करने लगी हूं
खुद को खुद की पहचान मिल गई
क्या खोया क्या पाया कोई मायने नहीं
जिंदगी को बेहतरीन जी लिया मैंने
चांदी सा गई बालों में
नयनों में अभी भी शर्म है
बातो में अभी वहीं संकोच है
ये नहीं तो नारी नहीं
नारी लाज शर्म की मूर्ति है
मै नारी हू हर पल हर वक्त गर्वित होती हूं
चांदी सा गई बालों मै
डॉ रश्मि खरे नीर
छुई खदान राजनांदगांव छत्तीसगढ़
