सुनो प्रिये
सुनो प्रिये
ये तेरी याद ही तो है,
मैं छुपाये दिल में बैठी हूँ,
बिछड़ने का जो ये गम है,
बड़ी बेदर्दी से सहती हूँ।
मिलन की वो जो बेला थी,
बड़ी ही अल्पजीवी थी,
उस एक पल में तू मेरा था,
उस एक पल में मै तेरी थी।
तेरे उस रूप का सजदा,
मैं हर पल को तरसती हूँ,
तू क्षण भर लौट के आजा,
मैं उस दर पर ही बैठी हूँ,
ये मेरा ही खुदा तो है,
जो मुझसे ही यूँ रूठा है,
सज़ा-ए-गुस्ताखी में,
इसने मेरे दिलबर को लूटा है।