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Rakshita Haripushpa

Abstract

5.0  

Rakshita Haripushpa

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मन में दबे कुछ शब्द

मन में दबे कुछ शब्द

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माना कि ज़ुबान पर ताला लगा सकते हो,

माना की पैरों में बेड़ियां बांध सकते हो,

माना कि चारदीवारियों में मुझे कैद कर सकते हो,

पर तुमने ये कैसे सोच लिया कि,

कलम-स्याही से पन्नो पर उतारने वाले

मेरे उन सारे उन शब्दों को भी,

मेरी रूह में समाई मेरी जज्बातों को

तुम मसल दोगे!?

पंखी का पर काटने के बाद,

पंखी लाचार भले हो जाये,

पर उसके अंदर उस गगन को

छूने की इच्छा हमेशा बसती है।

तुम्हें ये समझने का मेरा मकसद

ये नही है कि तुम समझो मेरे हालात,

पर बताना तो ये रह गया है बाकी तुम्हें आज,

कितना भी कैद कर लो मुझे उन अंधेरों के बीच,

पर मेरे मन में जलता वो दीप

मुझे मार्ग पर चलने का सहारा देगा!



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