सोच को बदलो!
सोच को बदलो!
कहीं दूर एक गाँव के घर से
आयी खिलखिलाने की आवाज़
वही कुछ देर बाद उसी घर से आई
बिलखकने और चिल्लाने की आवाज़!
जानना नही चाहेंगे क्या था वो राज़
जो एक तरफ था हर्ष तो दूसरी तरफ रुदन और प्रहार
वहां जन्मी थी एक नन्ही परी
पर देखा माँ जब तो वो थी बिलखती पड़ी!
खुशी तो आंखों में साफ झलक रही थी
पर बेटी की जन्म पर आखिर क्यूँ बिलख रही थी
मन में मेरे ये जवाब आया कि शायद ये
प्रसव पीड़ा के कारण होगा
किंतु जानकर हैरानी हुई कि ये तो
बेटी की परवरिश का डर सता रहा था उसे!
बाप ने तो ठुकरा ही दिया उस माँ और नवजात बेटी को
ये कहकर की जा तू लेकर अपने साथ ये बोझ
नहीं चाहिए मुझे बेटी और उसकी जिम्मेदार
मेरे माथे मत चढ़ा ये कलंक एक भारी!
बेबस माँ का न था कोई सहारा
चल पड़ी वो एक राह जिसका था न कोई किनारा
बेटी को पालने का उसका लक्ष्य था अटूट
तोड़ कर वो सारे रिश्ते नाते निकल पड़ी बहुत दूर!
चाहत थी उस माँ की बेटी को पालना
लाड़ प्यार और हर मूल्य से था उसको नवाजना
हर नन्हे कदम पर साथ साथ चलना
और एक सुंदर भविष्य का उसे सपना सजोना!
बेटी दिन प्रति दिन बढ़ती उम्र को पार करती गयी
और माँ का साया साथ पाकर हर रोड़ा कुचलती गयी
खतरों से लड़ना और लोगों के ताने
बन चुके थे माँ बेटी के रोज़ के फ़साने!
लाखों मन्नतो और कठिन परिश्रम के बाद
बेटी ने पाया समाज में औदा रख खास
बन गयी वो लोगों के प्रेरणा की स्रोत
अब चुभ रही थी उस बाप को अपने ही बेटी की सोच!
निकल चुकी थी बेटी बहुत आगे उस रोज़
जिस दिन आया वही बाप और बिलख पड़ा बहुत ज़ोर
मांगने लगा माँ बेटी से माफी की भीख
कहने लगा समझ आ गयी खुद की गलती इस रोज़!
कलंक कहकर निकाला था जिस बाप ने
वही आज गिड़गिड़ा रहा अपनी गलतियों पे
गुहार लगाई बेटी से कहाँ समझ आ गया तेरा अस्तित्व
अब ना कभी होगी तेरी वजूद को मिटाने की भूल!
बेटियों के वजूद को ना करो मिटाने की कोशिश
किसी ना किसी मोड़ पर जिंदगी जे सफर में
आओगे तुम सब अपने वंश को चलाने की पुकार लेकर
कहीं ऐसा न हो कि तब तक बेटियाँ का अस्तित्व विनाश हो चुका हो!