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shruti chowdhary

Tragedy

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shruti chowdhary

Tragedy

सुनो मेरी रीढ़ की हड्डी क्या कहती है

सुनो मेरी रीढ़ की हड्डी क्या कहती है

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झुकने की गुंजाईश नहीं रही 

दर्द का पहाड़ टूट पड़ा 

संभाले रखा था जिसे बरसों से 

सहम सा गया नाजुक दिल 

सांसें रुक- रुक के निकलती

सिसकियाँ भी तूफ़ान मचाती 

मेरी रीड़ की हड्डी खिसक गयी थी ,

आवाज़ में हसीं तो पहले ही गुम थी 

अब नज़र में उदासी 

हर पल घेरे रहती 

जिंदगी में पहली बार 

अंतरात्मा ने मत झुकने का

मतलब बताया, 

बचपन से नारी तो केवल 

झुकती चली आयी है

बिना कुछ शिकायत के 

गृहस्ती की नाव चलायी है 

अब उसकी पकवार 

में गैप आ गया है, 

बस वो झुकती रही 

अपनी रीढ को भूल ही गयी 

लगातार झुके रहने से

गैप में दरार आ गयी 

वो सोचती चली गयी 

किसे करूँ बयां, 

झुकी तो सबकी इज़्ज़त के लिए 

पर अपने अस्तित्व को 

खालीपन की जगह दे गयी 

जीवन का अल्हड़पन और 

सपने खिसक गए 

मन और चाहत 

इच्छा और अनिच्छा 

में भी दूरी आ गयी ,

क्या झुकना गलत था 

क्यों नारी को इंसान न समझा 

घर को घर बनानेवाली 

रीढ़ में भी एहसास होता है! 



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