सुनो लड़कियों
सुनो लड़कियों
सहेजने का हुनर ले जन्मी थी
सो सहेजती रही
मां -बाबा का दुलार
डांट -फटकार
भाई -बहन का झगड़ा
लाड़ - प्यार
दादी की सिखाई बात
बचपन की सखी का साथ
फिर एक दिन
नैनों में सहेज
मायके का घर -आंगन
और सहेजने का हुनर
पल्लू में बांध
चली आई वो नये घर
और सहेजने लगी
सास ससुर का हुक्म
पति का मान
ससुराल का सम्मान
प्रेम और तकरार
घर, बच्चे और रिश्तेदार
कुछ समय बाद
वो सहेजने लगी
खट्टे नीबू और कच्चे आम
बना मुरब्बा और अचार
जीवन से मिले अनगिनत
गहन अनुभवों का सार
चीजों को सहेजने में दक्ष
अफसोस ! कभी सहेज ना पाई
अपने सपने ,अपनी चाहतें
अपनी खुशियां ,अपना मन
सुनो लड़कियों !
तुम भी हो जाना एक दिन
दादी, नानी, मां, मौसी ,चाची, बुआ
और हर नारी की तरह
हर चीज को सहेजने में माहिर
लेकिन सबसे पहले
तुम सहेजना अपने सपने
अपनी खुशियां
और अपना मन............