सुकून
सुकून


वो उस रोशनी की तरह हैं....
मैं इस अँधेरे की तरह हूँ....
दोनों एक दूसरे के बिना कहीँ न कहीं अधूरे नजर आते हैं....
अँधेरे से ही रोशनी की कीमत समझ आती है,
रोशनी से ही अँधेरे का खौफ नजर आता है,
वो उस तपते सूरज सा तेज नजर आता है,
मैं इस खामोश काली रात सी नजर आती हूँ,
दिन से बेचैनी और रात से सूनापन समझ आता है,
जब दोनों मिलकर शाम बनते हैं,सिर्फ तभी उस एक नजारे से सुकून समझ आता है!!