मन्नतों का इक दीया
मन्नतों का इक दीया
1 min
379
बीत गया है बहुत कुछ
गुजरते वक्त के साथ
अपनी मासूमियत
बेच आये दुनियादारी के
बाजार में,
लाख कोशिशें की
हर किसी को खुश रखने की,
नाकाम हुए तो अपने लिए
सबको छोड़ आये,
सहमा हुआ सा मन
हर किसी के लिए
चट्टान बना ना खुद के
लबों पर हँसी आई
न गैरों को ही हँसा पाए
ऐ ख़ुदा तू ही बता
अब और क्या किया जाए
इसलिए मन्नतों का
इक दीया आज
दर पर तेरे जला आये।
