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Abhishek Chatterjee

Tragedy

4  

Abhishek Chatterjee

Tragedy

सुकून

सुकून

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क्यों आज ये सुबह इतनी सुस्त है ?
क्यों ये घडी की सुई रूकती नहीं ?
क्यों आज ये परदे खामोश है?
क्यों ये आज हवा की कहानी सुनती नहीं?

किताब का पन्ना उसी कहानी पे खुला पड़ा है,
जहा सोचा था अपना किरदार,
उसी स्याही से ना लिख पाया मैं 
इस ज़िन्दगी की कहानी, सूख गई हर धार,

क्यों ये खिड़किया खुली रह गई 
आज हवा भी तो नहीं बह रही 
कॉफ़ी का कप ठंडा हो चूका है 
चीज़े जैसी की वैसी ही रह गई

बिस्तर की सिलवटे वैसी ही है 
कई रातो से नींद नहीं है आँखों में   
छत की कुर्सी गवाह है इसकी 
जहा सिर्फ मैं और मेरी तन्हाई जागती थी 

क्यों ये पंखा आज इतना उदास है 
क्या घूम घूम के थक गया है ये 
थकना तो इस वक़्त को था 
ना जाने और क्या दर्द बचा है 

क्या माँगा था मैंने जिंदगी से    
बस एक ठहराव is दौड़ का  
जरा सा प्रेम जो दे सके सुकून  
पर जहाँ मिला सुकून वो रास्ता अलग था   

उम्र भर का साथ जो है क्या वही प्यार है ?
प्यार वह क्यों नहीं जो मिटके फनाह हो 
हर तरफ किनारा सा महसूस किया था  
एक दिन इसमें मिटना जरुरी था  

यह यादों को और कितना सैलाऊँ
क्यूंकि यह कोरे कागज़ है मुझसे परेशां  
स्याही चिढ़ने लगी थी मुझसे और थी हैरान  
समझ नहीं आया की जाऊ तो जाऊ कहा

कुछ कहानियां अधूरी रह गई थी  
अब उन्हें पूरी करने की ख्वाहिश ही नहीं  
जो हुआ था जो होने वाला था  
वह कहीं लिखी ही नहीं थी 

यही सोच कर सोचते बिस्तर के कोने में  
दब गया था मैं  
भीग चुकी थी चादर उस कोने की    
जहाँ चल पड़ी थी आँखों में जिंदगी रहे गुजर  

यह उजाले से अंधकार की और  
बढ़ चला था मैं यक़ीनन  
ऐसा नहीं की जीना नहीं था मुझे  
पर इस जिंदगी का ना राहा कोई छोर  

यह धड़कन साथ देना चाहती थी मेरी  
पर वजह मुकम्मल न थी  
कोशिश की थी मैंने जीने की प्यार को पाने की   
पर हस्ती ही न रही मेरी  

लोग झांक रहे थे खिड़की से अंदर  
खबर बन चूका था मैं  
उसी कोने में खड़ा होकर देख रहा था मैं  
अपने आप को सुकून में सोते हुए .


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