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सुहानी रात उतरी है

सुहानी रात उतरी है

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उन्मादीत चाँद ने रात की

पलकों तले सपना एक बोया है 

बादलों के झुरमुट से मांग कर

गगरी मेघ की वो लाया है.!

 

तारों को बिनती कर मनुहार से मनाया है 

भरनी है माँग मेहबूबा ए रात की 

चुटकी भर नील रंग आसमान पर बिछाया है.!


शबनम के कतरों से भीगता वो आया है 

ईद के ही दिन पर जश्न ये मनाया है,

नाखून के जितना ही बाकी है नभ पर 

दूज का ये चाँद सबके मन को भाया है.!


रात का ये आलम है

इश्क में है चाँद कायनात ने

मिलकर गीत गुनगुनाया है।

 

शब भर महफ़िल है

चली भोर के आगाज़ पर

रात ने शर्माते चेहरा छुपाया है.!


आईना ए झील में होता

प्रतिबिम्ब सा छूने जो मैं

चली तो मन में मुस्कराया है।


मंज़र हसीन था

रात के शृंगार का,

दिन के उजालों ने जल कर

मिटाया है।


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