सुधार एक सकारात्मक सोच
सुधार एक सकारात्मक सोच
मानव समाज राष्ट्र या विश्व के सुधार की
इच्छा और प्रयास।
निंदनीय नहीं, वंदनीय है,
सराहनीय भी ।
प्रश्न है, शुरुआत कहाँ से हो ?
और करेगा कौन?
असम्भव नहीं है, कुछ भी,।
आवश्यक है, सत्य, निष्ठा एवं
ईमानदारी पूर्वक श्रम की पहल ।
अतः शुरूआत भी
शुरू ही होनी चाहिए ।
स्वयं से ही की जानी चाहिए।
पहले हम स्वयं सुधरें ,
सुधारें अपना परिवार ।
क्रमिक सुधार का
असर,हर जगह जायेगा ।
पहले बनाएं आदर्श परिवार,
फिर मोहल्ला, गांव का प्रभाव।
राज्य में भी दिखेगा।
इसके असर से देश भी
अछूता रह जायेगा।
राष्ट्रों से ही तो विश्व बन है,
इसी सुधार की खुशबु से
संसार भी महकेगा
सुधार ,एक
कठिन कार्य है,
और स्वयं का
सुधारना कठिनतम ।
इसलिए आरम्भ ही।
नहीं करता कोई ।
सभी कहते तो जरूर हैं
कि हो जायेगा जी ,
सब हो जायेगा ।
मेरा मानना है,
यदि एक-एक करके
हम सब,स्वयं को सुधारें ।
तो फिर गिनती में हजार नहीं
लाख क्या , अरब हो जायेगा ।
यक़ीनन पूरा देश ही नहीं
सम्पूर्ण विश्व, सब हो जायेगा ।
चलो शुरु करते हैं सुधार की प्रक्रिया
अभी इसी वक्त स्वत: , अपने से।
क्या विचार है, आपका? सहमति है?
