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Ram Chandar Azad

Abstract

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Ram Chandar Azad

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सुबह का भुला शाम आ जाए

सुबह का भुला शाम आ जाए

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बहुत फिसड्डी वह पढ़ने में

जी न लगे कुछ भी करने में

सबक याद नहीं होता उसको

पर एक्सपर्ट नकल करने में


जब एग्जाम की आती बारी

हाथ पाँव हो जाते भारी

अक्ल काम नहीं करती उसकी

उसकी मति तब जाती मारी


पापा कहते बेटा पढ़ ले

वरना तू रोयेगा सुन ले

मन मस्ती में उसका रहता

भला पढ़ाई कैसे कर ले


गिल्ली डंडा पतंग उड़ाई

इससे उससे करे लड़ाई

पुस्तक कॉपी से मन भागे

खेल कूद में समय गँवाई


एक दिवस भैया घर आये

पापा ने थे उन्हें बुलाये

मोनू ने जब देखा उनको

अब वो बहाना कैसे बनाए


अगर पढ़ाई नहीं करोगे

तुम जीवन मे कैसे बढ़ोगे

कदर नहीं फिर करेगा कोई

सोच सोचकर पछताओगे


अच्छा खाना नही मिलेगा

कपड़ा अच्छा नहीं मिलेगा

मोटर गाड़ी अलग बात है

पैदल तुमको चलना पड़ेगा


यदि मैं अब से करूँ पढ़ाई

तो क्या होगी मेरी बड़ाई

हाँ हाँ हाँ तू ऊंचे पद पर

काम करेगा मेरे भाई


सुबह का भूला शाम आ जाए

उसको भूला नहीं कहा जाए

अभी से जो तू लगेगा पढ़ने

जो चाहेगा वो बन जाए।


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