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Chandramohan Kisku

Abstract

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Chandramohan Kisku

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सत्यवचन

सत्यवचन

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मेरी बातों पर 

विश्वास किसी को नहीं हो रहा 

तुम कह रहे हो 

मेरी भाषा नहीं है 

मेरी लिपि नहीं है 

धर्म और संस्कृति भी नहीं है।

जब भारत में 

आर्य आये विदेशों से 

तब क्या यहाँ के लोग ,

यहाँ के मूल निवासी 

गूंगे और बहरे ही थे ?

क्या वे आपस में 

बातें नहीं करते थे ?

अगर मेरी भाषा न रहती 

मेरी लिपि न रही 

तुम क्या हड़प्पा सभ्यता 

मोहनजोदड़ो सयता की बातें 

जान पाते ?

तुम अपनी तेज़ कलम से 

कलाबाजी दिखाकर 

मेरी सभ्यता को ही छुपा दिया 

और अब मेरी सभ्यता को ही 

झूठा कह रहे हो 

मेरी भाषा ,मेरी लिपि को 

मान्यता नहीं दे रहे हो 

तुम गाँव के 

चौकीदार होकर भी 

देश की राजा को 

गाली दे रहे हो .


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