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Kanchan Jharkhande

Abstract

4.7  

Kanchan Jharkhande

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स्त्रियों ने सदैव निस्वार्थ प्रेम किया

स्त्रियों ने सदैव निस्वार्थ प्रेम किया

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प्रेम "प्रेम" के नाम पर कलंकृत है

स्त्रियों ने सदैव निस्वार्थ प्रेम किया

परिणामतः क्या पाया ? 

सिलबट्टे में पड़ी मिर्च को खुसर से

पीसना


घट्टी में पड़ी दाल को कुचलकर 

पाक करना

गोबर के उपलों में धुआंधार 

दम घुटाव को सहना


प्रत्येक दिन की सुबह से शाम 

घर के सूक्ष्म आवश्यकताओं 

को संवारना

गेंहू की बड़ी बड़ी कट्टियों से

चावल में से धान और तेज़ ताप


की गरमाहट को खाना बनाते हुए

पी जाना या सब्जी में पड़े

मसालों

की अवहेलना को तारीफ़ समझ

हर रोज के नुक़्श को 


अमृत समझ कर पी जाना 

निस्वार्थ प्रेम की परिभाषा यदि 

यह रोज रोज के विष को पीना है

तो प्रेम "प्रेम" के नाम पर कलंकृत है

स्त्रियों को कोई हक नहीं कि वे


निस्वार्थ प्रेम करें

उन्हें हक़ नहीं कि वे प्रेम के नाम 

पर बेड़ियों व तानों की मनसा

को स्थापित् करें

इस घुटन की बेबसी को परिवार 

की अभिलाषाओँ के समक्ष 


ख़ुद के वजूद को कुचलकर रखना

प्रेम की परिभाषा नहीं

स्त्री तुम्हारा यह निस्वार्थ प्रेम

आने वाली समस्त नारी जाति के

जीवन की पगडंडियों में बाधा 


का प्रतीक बनेगाऔर तुम 

सदैव इस निस्वार्थ प्रेम की 

तपस्या में स्वयं का अस्तित्व

खो दोगी

यदि निस्वार्थ प्रेम यही है 

तो प्रेम "प्रेम" के नाम पर कलंकृत है।


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