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Sakshi Mutha

Abstract

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Sakshi Mutha

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स्त्री

स्त्री

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स्त्री एक माँ भी है और खुद बेटी भी है

स्त्री खुद जान भी है उसमे एक और जान बसती भी है


स्त्री पूरा जहान भी है और खुद एक हस्ती भी है

स्त्री सृष्टि की अनुपम रचना है और खुद इतिहास रचती भी है


घूंघट में छिपा साहस भी है

और मर्यादा की परकाश्ठा भी है

स्त्री स्नेह की धारा भी है दहक उठे तो

मणिकर्णिका भी है


संघर्षो के पथ पर चल

गिरती और सम्भ्लती भी है

खुद बनती बिगड़ती अपने

अंश को संवारती भी है


स्वच्छंद आसमां भी है और

खामोशी का सागर भी है

स्त्री marycom धरा की है तो

kalpana आसमां की है


भरपुर प्यार बिखेरती है पर

बदले में इतना ही चाहती है

मर्दों की इस दुनिया में स्त्री 

सिर्फ सम्मान ही तो चाहती है......।


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