स्त्री
स्त्री
स्त्री इसलिये
प्रणम्य है
सम्मानीय है
पूजनीय है कि
वो हमें जन्मती है
हमें शरीर देती है
मृत्यु लोक से हमारा
दीदार करवाती है।
स्त्री के प्रति हमारा
दृष्टिकोण अलग
स्त्री के प्रति हमारा
ब्यवहार अलग
और स्त्री के प्रति
प्रकृति का दृष्टिकोण अलग।
स्त्री यानि मॉं
प्रकृति का एक रूप
यकीनन प्रकृति
मॉं का सबसे सुंदर रूप है
सरवोत्तम रूप है माँ का प्रक्रति
हमारा वजूद ही है
स्त्री के प्रति हमारा दृष्टिकोण
प्रक्रति के प्रति हमारा दृष्टिकोण
जो भी है जैसा भी है
हमारा दृष्टिकोण स्त्री के प्रति
माँ के प्रति, प्रक्रति के प्रति
उसका तो स्पष्ट है
हमे शरीर मिलता रहेगा
और शरीर के विकास
और संरक्षण के प्रति
प्रक्रति का हमारे लिये
उपहार मिलता रहेगा
हम उसके प्रति
अपना नजरिया
बदल सकते हैं
पर उसका हमारे प्रति नजरिया
अपरिवर्तनशील है।
हमारे प्रति समर्पित
प्रक्रति का उपहार
हमारे लिये भोग और उपभोग हुआ
तो असंतुलन हुआ
आज हमारी दशा
हमारी कृतघ्नता है
और प्रक्रति हमारे लिए
अपने दिये उपहार को
संतुलित कर रही है
हवा नदी जल
सब शुद्ध कर रही है
जैसा कि दिया था उसने।
