स्त्री के रूप अनेक
स्त्री के रूप अनेक
तुम सब कर सकती हो, तुम जैसे भी हो हालात बदल सकती हो
,तुम ऐसी आँधी हो जो घने अंधेरे को भी उजाले में तब्दील कर सकती हो!!
तुम तड़के नये नये लगा सकती हो,तो तुम घर की गरीबी भी दूर कर सकती हो,
तुम सपने नये सजा सकती हो,तो उनको पूरा करने के लिये हालातो से भी लड़ सकती हो!!
तुम सब कर सकती हो तुम जैसे भी हो हालात बदल सकती हो,
क्यो हार मानती हो तुम, क्यो किसी से खुद को कम आकती हो तुम,क्यो दुसरो का मुँह ताकती हो तुम
सबके लिये इतना करती हो तुम अपनी बारी आई तो क्यो पीछे हटती हो तुम!!
तुम सब कर सकती हो तुम जैसे भी हो हालात बदल सकती हो,
क्या हुआ जो घर की तख्ती पे तुम्हारा नाम नहीं,
तुम मेहनत कर के अपना नाम तो बना सकती हो तुम,क्यो किसी की आड़ मैं छुपना तुम उगते सूरज की तरह ही रोज़ निकल सकती हो तुम!!
तुम सब कर सकती हो तुम जैसे भी हो हालात बदल सकती हो,
तुममें क्या है तुम जानती नहीं फुरसत के लम्हे में खुद को निखरती नहीं घर से कमज़ोर हो तो क्या हुआ खुद से कभी कमज़ोर मत होना,
देर से सही अपने आप को पहचाना तुम भी कुछ कर सकती हो ये खुद को बतलाना,
छोटा सा ही सही एक मुकाम तुम अपना जरूर बनाना!!
तुम सब कर सकती हो तुम…......