स्त्री और मयूर
स्त्री और मयूर
छोटी छवि की होती मिनिएचर पेंटिंग,
हस्तनिर्मित चित्रों की भावनायों से सजी,
सामान्य पेंटिंग से छोटी आकार में,
पर एक अनोखा जज्बात इनमे भरा होता।
ये चर्मपत्रों को सजाने के लिए बनाई जाती,
तैयार किए गए कार्ड भी सजते इससे,
तांबे या हाथी दांत पर बने लिमिंग में,
इनकी नाजुकता सचमुच बड़ी निखरती।
छोटे, बारीक गढ़े हुए चित्रों में,
बसता है कलाकारों का प्यारा संसार,
जो अपनी विचारधारा को छवि में पिरोकर,
करते हर छोटी से छोटी वस्तु से प्यार।
इस मिनिएचर पेंटिंग को देख कर,
दिल गुनगुनाता है कुछ नये सुर,
जिसमे छिपा है एक मयूर प्यारा,
जो भ्रमित हो उड़ जाता कहीं फुर्र।
उसके पास खड़ी महिला अठखेलियाँ करती,
कभी अपनी कंठमाला से उसे लुभाती,
बेचारे मयूर की मति भ्रमित हो मोतियों से,
अपनी चोंच की गति को सह ना पाती।
स्त्री और मयूर का ऐसा सुन्दर चित्रण,
मंत्रमुग्ध कर देता सबके हृदय स्पंदन,
इसके महान रचियता को इसीलिये तो,
हम सब कर जोड़ उनका करते वंदन।