सरहद के वीर
सरहद के वीर
यह कविता शहीदों को समर्पित
सरहद के रखवालों का
जोश कभी कम होता नहीं
खेलते हैं गोला बारूद से
रोष कभी उनका दिखता नहीं
ठोस कदम, पैनी दृष्टि
गज़ब है उनकी वेषभूषा
दुश्मन से लोहा लेना
कुछ और उन्हें सुहाता नहीं
गोली खाने को तत्पर तैयार
रहते हर दम हंसते हंसते
हिमालय सा उनका हौसला
किसी हाल में पस्त होता नहीं
मातृभूमि की रक्षा करना
एक ही सपना बस्ता आंखों में
एक ही धुन " वंदे मातरम"
कुछ और उनको सुनाई देता नहीं
हैं वे भी नूर किसी की आंखों का
सिंदूर खनकती चूड़ियों वालियों का
पर सदा धीर बनाये रखते हैं
वह सरहद का रक्षक कभी रोता नहीं
चढ़ जाते हैं बलि हंसते हंसते
हो जातीं सूनी गोद, मिट जाते सिंदूर
रक्त रंजित शव तिरंगे से लिपटा
देश प्रेम सिवा कुछ और दिखाता नहीं
नमन है उन वीर जवानों को
सीमा की डोर है जिनके हाथों में
मातृभूमि के असली रखवाले
उनपर दुश्मन भारी कभी पड़ता नहीं
सरहद पर लड़ने वालों की
गाथायें हैं खूब बड़ी मर्दानी
शहीद दिवस समर्पित इन वीरों को
बिना इनके कभी देश आगे बढ़ता नहीं