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Ajay Singla

Abstract

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Ajay Singla

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सर्दी

सर्दी

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पहाड़ों पर जब बर्फ पड़ी थी 

इस बार ठण्ड भी जल्दी आई 

नवंबर में इस बार थे हमने 

ओढ़े कम्बल और रजाई 


दिसंबर में ठण्ड और बढ़ गयी 

कभी कभी बदली थी छाई 

रजाई में भी ठण्ड लग रही 

हीटर की तब बारी आई 


घूमने पहुंचे क्रिसमस पर हम 

मथुरा में हम घूम रहे 

किस्मत से तब धूप थी निकली 

धूप में हम थे झूम रहे 


नए साल में जब घर आए 

सर्दी थी और ठिठुरन बड़ी थी 

आसमान में फिर बादल थे 

पहाड़ों पर फिर बर्फ पड़ी थी 


लोहड़ी आई हमने सोचा 

मौसम अब सुहाना होगा 

ठण्ड थोड़ी सी कम होगी अब 

धूप को अब तो आना होगा 


जनवरी अब तो ख़तम हो गयी 

बसंत भी अब तो आ गया है 

पर सर्दी तुम गयी नहीं क्यों 

तुमको क्या यहाँ भा गया है 


सर्दी रानी बस करो अब 

कब तक अब तड़पाओगी तुम 

बाहर खेलने को हम तरसे 

बताओ कब तक जाओगी तुम।


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