सर्द होती रातें
सर्द होती रातें
सर्द होती ये रातें
कोई ओडे़ कंबल
कोई आग है तापे
जाड़े से बचने हेतू।
ओड़ के लिहाफ
रुम हीटर है चलाए
जो थोड़ा संपन्न है
वह शरीर को गर्म रखने
ख़ातिर मेवा है खाए।
ये सब तो सही है साहब लेकिन
सोचो थोड़ा उनके बारे भी जनाब
जो गरीब बेसहारा और अनाथ है
कैसे वो कड़ाके की सर्द रात बिताए।
सर पर छप्पर नहीं
हाथ मे बिस्तर नहीं
गहराती सर्द रात से
सड़क पर खुद को बचाए।
मजबूर और गरीब है
कहीं तड़प कर मर न जाए
इंसानियत के नाते ही सही
थोड़ा सा तो रहम दिखाए।
ज्यादा कुछ नहीं पुराने ही सही
गर्म लत्ते और कंबल
जो पड़े हो फालतू वो ही
इन जरूरतमंद को दे आए।
ढूंढते फिरते हो खुदा को
दर दर कितना पैसा है लुटाते
किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में
उनके दर्शन है तुम पाते।
फिर भी मन की शांति के लिए
व्यर्थ ही दान कर आते
जनाब इन गरीबों के दिल में
भी तो ईश्वर है समाते।
यही समझ कर फिर क्यों
इनकी मदद को हाथ नहीं बढ़ाते
हर बरस न जाने कितने लोग
ठंड के चलते हैं जान से जाते।
इन लावारिसों की लाश देख
क्यों नहीं ये दिल पसीज जाते
शायद ये छोटी सी कोशिश
किसी का जीवन बचा दे...