सपने
सपने
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नींदों में आकर भी ओझल हो जाते हैं
अपने हो कर भी टूट जाते हैं।
ख्वाब दिखाना इनकी
आदत सी हो गयी है।
आँखें खुलते ही उनको पाने की
चाहत सी हो गयी है।
ये वो दिखाते हैं
जो हम करना चाहते हैं।
ये वो भी दिखाते हैं
जो हम बनना नहीं चाहते हैं।
सुबह उठते ही एक कहानी
रात की सामने आती है।
कुछ अनकही बातें
दिल को बताती है।
ये सपने भी बड़े
अजीब होते हैं।
क्या दिखाते क्या करवाते हैं
ख्वाब तो लोग खुली आँखों से
देख जाते हैं,
पर सपने तो बंद
आँखों के सामने ही आते हैं।