सपने कैसे होते हैं।
सपने कैसे होते हैं।
क्या तुम्हें पता है सपने कैसे होते हैं
कुछ छोटे कुछ बड़े, कुछ आधे कुछ पूरे।
कुछ हंसते कुछ हंसाते, कुछ बेरंगे कुछ रंगीन
हर सपना होता एक दूजे से जुदा
कुछ में हम बनते कारिंदा कुछ में होते खुदा।
कुछ पलकों में ही सो जाते
तो कुछ हो भी जाते हैं जिंदा।
बुनते हैं हम कैसे कैसे धागों से
ये सपने वाकई बड़े महीन होते हैं।
कुछ कहते अपने बारे में,
तो कुछ बातें करते गैरों की,
कुछ मौज सुनाते गांवों की,
कुछ फिरकी लेते शहरों की।
कुछ धूप के, कुछ छांव के,
कुछ मखमल के, कुछ फटते पांव के।
कभी मन को सहलाते, कभी पूरे तन को दहलाते हैं
कभी जागे सपनों के लिए, कभी सपने हमको सुलाते हैं,
सच कहता हूं यारों ये सपने भी बड़े अजीब होते हैं।
किसी को सपनों में जादू दिखता,
कोई सपनों में खुद ही बिकता।
किसी के सपनों में काजू पिस्ता,
कोई सपनों के पाटों में पिसता।
कुछ को मिलता है बिस्तर,
तो कुछ यूं ही सोते हैं।
कुछ के सपनों में बस आती खुशी
कुछ सपनों में भी रोते हैं
पर हों कैसे भी सपने यादों के करीब होते हैं।
अजब गजब होते हैं सपने,
बच्चों के भी होते हैं अपने।
पर लगता है वो तो सच्चे होंगे,
हमसे तो कुछ अच्छे होंगे।
कुछ में आते होंगे झूले,
कुछ मस्ती में होंगे सपनों को भूले।
कुछ में रसगुल्ले, कुछ में नमकीन
तो कुछ में पिज्जा बर्गर के सीन होते हैं।
सपने बचपन के तो मस्ती से रंगीन होते हैं।
क्या तुमको भी आते हैं सपने
होते गैरों के या आते अपने,
उठकर सवेरे क्या वो याद रहते,
या लग जाते हैं खोने,
कहां से आते हैं कहां लौट जाते हैं।
क्या है कोई पता जहां सपने रहने जाते हैं
कुछ सपनों में फंस रहे जाते हैं पीछे,
कुछ सपनों को ही आगे खींच लाते हैं,
गर समझो दिल से यारों तो सपने बड़े जहीन होते हैं।
