सपने अनदेखी जन्नतों के
सपने अनदेखी जन्नतों के
दिल-ए-लिफाफे में,
आकाँक्षाओं के ख़त,
सिमटे हैं तो क्या?
कटनी है इन साँसों की डोर,
शायद इस फाग,
शायद अगले फाग।
सपने अनदेखी जन्नतों के,
गढ़े हैं लाखों हज़ार,
आँखों देखे मुक्तिधाम के बाग़।
जिस्म-ए-खिलौने से,
उम्मीद ना कर इस कदर,
कि ये अंकुश बर्दाश्त ना हो,
शायद आज हो तेरा ख़ाक,
शायद कल हो तेरा खाक।
