Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Dinesh Uniyal

Classics

4  

Dinesh Uniyal

Classics

सपना

सपना

1 min
246


मन कहता कब होंगे पूरे

मेरे सपनों की आवाज है

जाने कब मिलेगा मुझको

सपनों का ना आगाज है


सपनों को सुनकर मेरे तो

सारी दुनिया हंसती है

कुछ ना कर पाएगा मुझको

ताने देती रहती है


सहारा नहीं मिला था मुझको

फिर भी चलता रहता हूं

कभी यहां तो कभी वहां

हरदम गिरता रहता हूं


सब बढ़ जाते है आगे मुझसे

अब तक हूं मैं वहीं खड़ा

सोच - सोच कर सर पर मेरे

कितना सारा बोझ पड़ा


सपनों को पूरा करने की

इतनी तो हिम्मत दे दो

रूठना ना तुम मुझसे भगवन

बस इतनी कृपा कर दो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics