सपना
सपना
भये राम देखा एक सपना
पापी पाप बसे जग अपना
भलन के सब पत्थर मारे
नंगा नाच सब जग नाचे।
कलयुग ऐसा रुप दिखाई
धरती पे अजीब विपदा ले आई
नीच तृया चरित्र था जो पहले
अब वही सब जग दिया दिखाई।
माफ करना हे धनी मोको
कालिख रंग क्यो न लगा मोको
सारा जग लगे एक रंग का
मैं खड़ा क्यों अलग रंग का।
रोता रहा है धनी मैं तो
चढ़ा क्यो न ये
"नवीन" रंग मुझको
मैं तो था मुरख अज्ञानी
पाया केवल नश्वर ज्ञानी।
ईश्वर शक्ति कभी न देखा
सारा जीवन उतार कर देखा।
