सफर
सफर
क्यों हुआ निराश तू, सफर से ओ मुसाफिर l
ये तो वो लम्हा है, जो यूं ही गुजर जायेगा ll
मंज़िल जब होगी हासिल , यकीनन l
तुझे बस ये तेरा सफर ही याद आएगा ll
कितनी कर ले कोशिश, ये वक़्त कभी ठहरा नहीं l
तू खुद गुलाम है इसका, इस पर तेरा पहरा नहीं ll
लाख रोकना चाहेगा तू ,पर वक़्त गुज़रता जायेगा l
दुनिया की इस चकाचौंध में, उलझा ही रह जायेगा ll
अंत समय में तुझको ,ये तेरा सफर ही याद आएगा ll
पैर तेरे जब डगमग होंगे, आँ
खों से देख न पाएगा l
चाह के भी उठ न सकेगा, ऐसा वक़्त भी आएगा ll
जीवन का ये फलसफा, जब सिमटता ही जायेगा l
अंत समय में तुझको, ये तेरा सफर ही याद आएगा ll
दूर झमेलों से निकल, दुनिया अपनी आबाद कर l
आँखें अपनी बंद कर ,फिर गहरी सी एक साँस भर ll
दुख दर्द को अपने भूलकर, तू हल्का आत्मसात कर l
एक सुकूं मिलेगा दिल को, दिल हल्का हो जायेगा ll
भाग दौड़ तू कर ले कितनी, कुछ भी हाथ न आएगा l
अंत समय में तुझको ,ये तेरा सफर ही याद आएगा ll