सफर में
सफर में
इस अनजाने सफ़र में
अनजाने थे अपना
कुछ अनजlनी थी मैं
कुछ अनजlने मेरे सपने
कुछ ख्वाब भी थी
बेगाने से
कुछ लोग जाने पहचाने से
किस सफ़र परा मुझ को चलना था
किस डगर पार मुझको रुकना था
इस ज़िन्दगी से क्या चlहती थी
ये ज़िन्दगी भी रुलाती थी
किस ज़िन्दगी की थी तलाश
मैं अनजानी थी तब और आज।